Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Dec 2023 · 4 min read

#शुभाशीष !

🙏{ स्वर्णिम स्मृतियाँ }

★ #शुभाशीष ! ★

यदि रवींद्रनाथ टैगोर के चित्र के नीचे “लाला धनपतराय लाम्बा” लिख दिया जाए तो वो लोग इसे सच मानेंगे जिन्होंने मेरे दादाजी को देखा है। रत्ती भर भी अंतर नहीं था दोनों के चेहरे कद और पहरावे में। लेकिन, तब भी एक अंतर तो था कि लालाजी ने हिंदी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और पश्तो भाषाओं के जानकार व सरकारी नौकरी में रहते हुए भी किसी विदेशी आक्रांता सम्राट का गुणगान कभी नहीं किया।

ठीक ऐसी ही एक और विभूति हुए हैं सरस्वतीपुत्र श्री देवेन्द्र सत्यार्थी जी। उनकी भी मुखाकृति कद व पहरावा मेरे दादाजी जैसा ही था। हिंदी पंजाबी भाषाओं के वे ऐसे भारतीय लेखक हुए हैं जिनकी अनेक रचनाओं का फ्रेंच भाषा में अनुवाद हुआ है।

एक दिन मेरा भाग्यकुसुम ऐसा खिला कि उनके स्नेह की बरखा में मेरा तन और मन भीजते रहे और मैं जैसे जन्म-जन्म का प्यासा वो अमृतवाणी पीता भी रहा और सहेजता भी रहा। आज अवसर आया है उन दिव्य पलों की स्मृतियों में अपने साथ आपको भी ले जाने का।

“केन्द्रीय पंजाबी लेखक सभा” के सम्मेलन में तब पंजाबी के लगभग सभी लेखक व कवि पधारे थे। तब की लोकप्रिय मासिक पत्रिका “हेम ज्योति” (पंजाबी) के मुद्रण व प्रबंधन का दायित्व मेरे पास होने के कारण और दूजा उन्हीं दिनों प्रकाशित मेरी कविता “सवालिया फिकरे दी घुंडी” ने मुझे तब शिखर पर पहुंचा दिया था इस कारण मेरा परिचय अनेक वरिष्ठ लेखकों से भी हुआ।

सुरेंदर जी “हेम ज्योति” के संपादक-प्रकाशक थे। बलवंत गार्गी जी हमारे प्रेस पर आए और पूछा, “सुरेंदर जी हैं?”

मैं उन्हें पहचानता था क्योंकि उनकी कुछ रचनाओं के साथ उनकी तस्वीर भी प्रकाशित हो चुकी थी। मैंने कहा कि “सुरेंदर जी तो नहीं हैं, आप बैठिए। कुछ चाय-नाश्ता लीजिए।”

वे बोले, “पानी पिलवा दीजिए।” मैंने पानी लाने के लिए लड़के को आवाज़ लगाई। तभी उन्होंने कहा कि “सुरेंदर जी को बोल दीजिए कि बलवंत गार्गी आया था।”

मैंने कहा, “जी, मैं आपको पहचानता हूँ।”

“आप भी लिखते हैं।” संभवतया उन्होंने मेरे बारे में सुन रखा था।

“जी हाँ, कुछ-कुछ लिखना आरंभ किया ही है।”

“अच्छा है। लिखते रहना”। वे पानी पीकर चले गए।

शिवकुमार बटालवी आए। लगभग चालीस साल की आयु होगी। फिल्मों के नायक जैसे सुदर्शन। आँखों पर चश्मा। उन्हें कौन नहीं पहचानता था तब। मेरे बहुत कहने पर भी वे कार्यालय के भीतर नहीं आए। बाहर से ही “सुरेंदर जी हैं क्या?” पूछा और मेरे मना करने पर “बोल देना शिव बटालवी आया था”, कहा और चले गए।

उन्हीं दिनों मेरी पहली कहानी ‘मोमबत्ती’ पंजाबी भाषा में प्रकाशित हुई थी। तभी एक विद्यार्थी ने एक शिक्षण संस्थान छोड़कर दूसरे में प्रवेश लिया तो उसे पता चला कि जबसे यह संस्थान आरंभ हुआ है विद्यार्थियों से पत्रिका का चंदा तो लिया जाता है परंतु, पत्रिका प्रकाशित कभी नहीं हुई। उसने प्रबंधन से बात करके पत्रिका प्रकाशित करने का बीड़ा उठा लिया। अब समस्या थी लेखकों की और रचनाओं की। पंजाबी भाषा का तो जैसे-तैसे जुगाड़ हो गया परंतु, हिंदी की रचनाओं की समस्या हल न हुई। तब नवतेज ढिल्लों (संभवतया यही नाम था उस विद्यार्थी का) ने मुझे मेरी कहानी ‘मोमबत्ती’ और कुछ कविताएं हिंदी भाषा में देने का अनुरोध किया। इस तरह वो कहानी हिंदी में भी प्रकाशित हो गई। तभी आकाशवाणी जलंधर के ‘युवमंच’ कार्यक्रम में मैंने वही कहानी हिंदी में पढ़ी। तब मुझे उसका पारिश्रमिक ब्यालीस रुपये के बैंक चैक के रूप में मिला था। मेरे ज्येष्ठ भ्राता श्री सत्यपाल जी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि “इस चैक को बैंक में मत जमा करवाना। इसे फ्रेम में जड़वाकर रख लेना क्योंकि मुझे नहीं लगता कि तुम कोई दूजी कहानी भी लिखोगे।” उनका प्रेरित करने का यह अपना ही ढंग था।

कवि-चित्रकार देव ने पंजाबी भाषा में एक लम्बी कविता लिखी थी “मेरे दिन का सूरज”। इसी शीर्षक से प्रकाशित होने जा रही उनकी पुस्तक में वो एक ही कविता थी। देवेन्द्र सत्यार्थी जी उनके घर ठहरे थे। उन्होंने मुझे सायंकाल देव के घर अपनी प्रकाशित कहानी और साथ में देव की कविता के प्रूफ लेकर आने को कहा। देव उनसे अपनी कविता जँचवाना चाहते थे।

मैं यह कहानी कह रहा हूँ और कानों में सत्यार्थी जी का स्वर गूंज रहा है, “वेद, यहाँ ‘तू’ के स्थान पर ‘आप’ कर दें तो कैसा रहेगा?” मैं देव की कविता पढ़कर उन्हें सुना रहा था और वे अपनी सम्मति व्यक्त कर रहे थे, “देव से भी पूछ लें क्योंकि अंततः कविता तो उसकी है?” मैं वंशी की धुन पर नाचते मोर की तरह कभी सत्यार्थी जी को देखता कभी देव जी को।

“जो आपको ठीक लगे वही कर दीजिए।” देव कहते और मैं ‘तू’ को ‘आप’ करने के पाप से बच जाता।

देव की पत्नी लोकसंपर्क विभाग में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थीं। उन्होंने सत्यार्थी जी के लिए जो पकवान बनाए उनका स्वाद मुझे भी चखने को मिला। मैं तो धन्य हो गया। लेकिन, अभी मेरा गंगास्नान तो शेष था।

मैंने जब अपनी कहानी सुनाई तो सत्यार्थी जी कुछ पल की चुप्पी के बाद बोले, “देव, जिसका आरंभ यह है उसका अंत क्या होगा?” मेरे कान गर्म हो गए थे। सांस रुक-सी गई थी। आँखों का पानी बाहर आने को मचलने लगा था कि तभी देवालय की घंटी-सा उनका स्वर फिर गूँजा, “वैसे देव एक बात यह भी है कि एक कहानी, एक कविता, एक उपन्यास तो कोई भी लिख सकता है।” लगा जैसे मंदिर में आरती का समय हो गया। बरसों-बरस मंदिर की घंटियों की वो पवित्र ध्वनि मेरे अंतस में गूँजती रही। आज लगभग पचास बरस के बाद दूसरी कहानी लिखी है, ‘छठा नोट’। और यह समर्पित है मेरे पुरखों स्वर्गीय भ्राताश्री सत्यपाल जी को, दादा जी लाला धनपतराय लाम्बा जी को व मेरे मन के मीत श्री देवेन्द्र सत्यार्थी जी को। उनकी शुभाशीष को फल लगे हैं आज।

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
185 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर से बात
ईश्वर से बात
Rakesh Bahanwal
कौन सुनेगा बात हमारी
कौन सुनेगा बात हमारी
Surinder blackpen
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
कविता
कविता
Neelam Sharma
मैं तुझ सा कोई ढूंढती रही
मैं तुझ सा कोई ढूंढती रही
Chitra Bisht
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
Anis Shah
लोकतंत्र का खेल
लोकतंत्र का खेल
Anil chobisa
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
SHAMA PARVEEN
तू अब खुद से प्यार कर
तू अब खुद से प्यार कर
gurudeenverma198
दिल का क्या है   ....
दिल का क्या है ....
sushil sarna
"इक दनदनाती है ,रेल ,जो रोज है चलती ,
Neeraj kumar Soni
अहंकार
अहंकार
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
उकसा रहे हो
उकसा रहे हो
विनोद सिल्ला
**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मैं दुआ करता हूं तू उसको मुकम्मल कर दे,
मैं दुआ करता हूं तू उसको मुकम्मल कर दे,
Abhishek Soni
देश का वामपंथ
देश का वामपंथ
विजय कुमार अग्रवाल
* सामने आ गये *
* सामने आ गये *
surenderpal vaidya
कान्हा भक्ति गीत
कान्हा भक्ति गीत
Kanchan Khanna
4548.*पूर्णिका*
4548.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
🌹जिन्दगी🌹
🌹जिन्दगी🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
माज़ी में जनाब ग़ालिब नज़र आएगा
माज़ी में जनाब ग़ालिब नज़र आएगा
Atul "Krishn"
I want to hug you
I want to hug you
VINOD CHAUHAN
तय
तय
Ajay Mishra
..
..
*प्रणय*
ग़म हमें सब भुलाने पड़े।
ग़म हमें सब भुलाने पड़े।
पंकज परिंदा
*परिवार: नौ दोहे*
*परिवार: नौ दोहे*
Ravi Prakash
" खुशी "
Dr. Kishan tandon kranti
दुनिया में कुछ भी बदलने के लिए हमें Magic की जरूरत नहीं है,
दुनिया में कुछ भी बदलने के लिए हमें Magic की जरूरत नहीं है,
Sunil Maheshwari
जंजीर
जंजीर
AJAY AMITABH SUMAN
The people who love you the most deserve your patience, resp
The people who love you the most deserve your patience, resp
पूर्वार्थ
Loading...