शुभारंभ करें
शुभारंभ करें !!
आओ! हम शुभारंभ करें !
भूले हुए संस्कारों का,
अमर्यादित भाषा ,विचारों का,
विस्मृत हुए इतिहास का ,
लुप्त हुई सभ्यताओं का !
पुन: शुभारंभ करें !!
छूट रहे सब रिश्ते नाते ,
टूट रही अब प्रकृति से बातें,
एक दूजे से मन का मिलना
नित जीवन में उल्लास चहकना !
खुद में सिमटे खोए- खोए,
निजता में खोते
रिश्तो में जीने का पुनः आरंभ करें!
आओ नया शुभारंभ करें !!
तकनीकी क्रांति ने जग में
सब कुछ आहुत कर डाला है,
मन का चैन -सकूंन गया
सपनों को भी धो डाला है,
डिजिटल को ढूंढते- ढूंढते हम
सच को भी पीछे छोड़,
दासत्व स्वयं स्वीकार किया
आधुनिकता को अपनाएं हैं!
अधनाधुन के आंदोलन में ,
खुद का ही बंटाधार किया !
आओ पुनः शुभारंभ करें !
आओ! अभी कुछ नहीं बिगड़ा है
आधुनिकता और तकनीकी ने
जो, कसकर सबको जकड़ा है,
जाति, धर्म और वैमनस्यता को
प्रेम, त्याग से दमन करो ,
नातों को पहचानों जरा
उनको भी अपना मानों तुम,
फिर से जी लों,अपनों के संग,
सच कर,
सपनों में भर दें रंग,
जीवन में एक स्तंभ बने !
अवलोकन कर ! आरंभ करें !!
नमिता गुप्ता ✍️
लखनऊ