शीर्षहीन
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सूरज की किरणें,जीवन का संकल्प है।
पृथ्वी से इतर सारे ग्रहों पर गल्प है।
जीव ईश्वर का गतिज-यंत्र तो नहीं!
और शक्ति-दाता सूर्य,तंत्र तो नहीं।
प्राण का विश्लेषण है ज्ञान के पास।
ज्ञान प्रारम्भ होता है प्राण के बाद।
प्राण मिथ्या है,अत: ज्ञान भी होगा।
मिथ्या ही सत्य है,सत्य ज्ञान होगा।
उलझे हुए फिलासफ़ी में उलझे लोग।
तन जो भोगता है,मन क्या वही भोग!
पृथ्वी सूर्य का सूर्य आकाश-गंगा का।
आकाश-गंगाएँ चक्कर लगाती जिसका।
वह और किसका, वह और किसका।
हम उसकी ही तरह जीते हैं मिथ्या।
हमारा जो क्षण बीतता है वह है किसका!
वह क्षण साक्षी असीमित घटनाओं का।
जिस क्षण में प्रवेश करते हैं वह कौन।
जिन क्षणों को घटता देखते मन में वह भी रहता है बस मौन।
हम सारा जीवन अहंकार में ही जीते हैं।
अहंकार में न जीना पराजय मानते हैं।
पराजय को सत्य मानना हमारी नीयत है।
नियति ईश्वर नहीं हमारा अपना भय है।
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अरुण कुमार प्रसाद /14/6/21