शीर्षक:
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अल्फ़ाज़ अपने कागज पर उतारती हूं
धरा के आँचल में सुखों की हरियाली से
सजाना चाहती हूँ बस यूँ ही लेखनी से
धरा के दुख को उकेरना चाहती हूँ
काटे गए वृक्ष ही व्यथा को बस आपके लिए
अल्फ़ाज़ अपने कागज पर उतारती हूं…
आज मानव सोच जो हो गई कलुषित
उस पर ही शब्दों को उकेरना चाहती हूँ
आप सभी को लेखनी से जगाना चाहती हूँ
काटे गए पेड़ थम गई साँसे बचाना चाहती हूँ
अल्फ़ाज़ अपने कागज पर उतारती हूं…
पेड़ ही साँसों का प्राण आधार है बताना चाहती हूँ
मिलकर करे रक्षा इसकी यही बताना चाहती हूँ
सब वृक्षारोपण की अलख जगाए लिखना चाहती हूँ
पृथ्वी के श्रंगार को अलख जगाकर बचाना चाहती हूँ
अल्फ़ाज़ अपने कागज पर उतारती हूं…
हरियाली बनी रहे स्वच्छ वायु मिले चेताना चाहती हूँ
देव समान पूजनीय पेड़ो हम को बचाये चाहती हूँ
आओ मिलकर कदम बढ़ाए चाहती हूँ
धरा को हरियाली व पुष्पों से महकाएं चाहती हूँ
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद