शीर्षक: ख़त पापा के नाम
शीर्षक: ख़त पापा के नाम
आपकी याद हर पल बनी हैं
आखिर क्यों गए आप ऐसे बिन बोले बताए
हर रोज़ लिखती हूँ आपके लिए आपकी यादो में
आपकी बातों पर,आपकी स्नेहिल मुस्कान पर
याद आती हैं वो बाते जो हम दोनों किया करते थे बैठ
माँ कई बार आपको बोलती भी थी कि
बिटिया को अगले घर भी जाना है मत दो
इतना लाड़ दुलार कि यह रह न जैसे आप बिन
आज याद आती हैं आपकी वो जवाब देने की अदा
आप कहते थे मैं रहूंगा अपनी बिटिया संग
कभी नही होगी ये मुझसे दूर
एक ख़त आज भी सहेज कर रखा हैं मैंने आपका लिखा
एक घड़ी,एक टोपी आज भी याद दिलाती हैं आपकी
कैसे आप उस दिन चले गए मुझसे बिन बोले
मैं पूछती रही रो रो कर पर आप सोते रहे चिरनिंद्रा में
क्यो आने मुँह मोड़ लिया मुझसे क्या ख़ता रही मेरी
माँ बोलती रही रो कर कि बोल तेरे कहने से उठ जायेगे
पर आप तो शांत चित्त लेटे रहे बिन देखे
आज भी सामने की सड़क से गुजरती हूँ तो
यादे ताजा हो जाती हैं मानो आप ओर मैं साथ ही हूँ
आज भी आपकी यादो में घिरी
आपकी बिटिया
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद