शीर्षक-“शब्द मोतियों की महफिल “(1)
जब से देखा था तुम्हें, कुछ विचारों की श्रृंखला
के माध्यम से शब्द रूपी मालाओं के साथ बुदबुदाने लगा मन,एक छोटी सी कविता का होने लगा सृजन,
कविता लिखते-लिखते, तुम्हारी हसीं शायरी में
कर रही थी मैं सवारी, अब पढ़ने की थी सबकी बारी,
शब्द मोतियों की महफिल में
मन तो तुम्हारे सपनों में खो गया
और जब नींद से जागी,
आशियाना तुम्हारा अब मेरा हो गया,
फिर क्या उस आशियाने में होने लगा नया सबेरा,
जीवन की आवाजाही में होने लगा रैन बसेरा,
गुलशन के गुलिस्तां में खिले दो नन्हे फूल,
यूं महका चमन और दो दिलों को मिला आसरा,
धूप-छांव के इस खेल में गहराते अंधियारे,
बादलों में से फिर सुकून भरी रोशनी,
कविता रूप में निखर कर लेखनी छाई,
साजन ने उत्साह भरे आत्मविश्वास के साथ
पूर्ण की भरपाई,
भले ही वे पहुँचे हों स्वर्ग लोक में ईश्वर के पास,
न उम्र की बंदिश हो, न जन्म का हो अहसास
लेकिन मुझे अनुभूति है कि वे यहीं है मेरे आस-पास
मुझमें रखेंगे कायम प्यार भरा मेरा सच्चा विश्वास,
मेरी लेखनी कविताएं हरदम लिखती रहेगी बिंदास।
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल