शीर्षक -“मैं क्या लिखूंँ “
शीर्षक -“मैं क्या लिखूंँ”
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जिसने खुद सृष्टि को रचा,
मैं क्या उस प्रभु पर लिखूंँ।
जिसने मानव को ज्ञान दिया,
उस प्रभु के लिए मैं क्या लिखूँ।।
जिसने जीवन के संघर्ष से कभी,
हार नहीं मानी उस पर मैं क्या लिखूंँ।
जिसने मन के अंधियारों को सदा,
उजाले में बदला उस दीप पर मैं
क्या लिखूंँ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने,
किया जगत कल्याण!
उन रघुनंदन पर मैं क्या लिखूंँ!
माखन चोर बंशी बजैया कान्हा,
मीरा जिसकी दीवानी उस पर
मैं क्या लिखूंँ!
कदम के पेड़ बैठे यमुना के तीरे ,
जो गोपियों को छेड़े उस पर मैं,
क्या लिखूंँ!
ये धरती और अंबर और पवन ,
जो मानव को जीवन दान दें,
उस पर मैं क्या लिखूंँ!
राधा का मोहन! यशोदा का लाल,
जो राधा के दिल की धड़कन!
यशोदा के आँख का तारा?
उस पर मैं क्या लिखूंँ!
क्या लिखूंँ!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,