शीर्षक : माँ
माँ से है मेरी धड़कन,
माँ में ही समाया जग सारा ।
माँ ही तो होती है पावन ,
नहीं कोई उससे पार पाया ।
ममता की वो तो देवी है ,
बच्चों पर प्यार लुटाती है ।
अच्छाई की शिक्षा देती है ,
सदाचार सदा सिखाती है ।
अपने भूखे रह लेती पर,
बच्चों को सदा खिलाती है ।
माँ ही है वो मूरत जग की ,
जो सदा स्नेह बरसाती है ।
होती है सबसे भोली वो ,
पर कार्य बड़े कर जाती वो ।
जब भी आए बिपदा बच्चे पर ,
भगवान से भी लड़ जाती वो ।
माँ शब्द अनूठा है ऐसा ,
कहते ही कलियाँ मिल जाती ।
रोता भी हृदय गर हो किसी का ,
माँ से उसे खुशियाँ मिल जाती ।
माँ की ममता का वर्णन ,
नहीं मेरी कलम ए कर पाती ।
ए तो है माँ की ही महिमा ,
जो बन शब्द यहाँ खुद लिख जाती ।
पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
गोरखपुर उत्तर प्रदेश