शीर्षक-“मन एक सागर “(2)
मन एक सागर
मन एक सागर,
उठती विचारों की लहर,
चलती,गोता-खाती,रूकती,
कभी गुम हो जाती,
कुछ लहरें समेट लाती कंकर पत्थर,
पर वे चलती हैं बिना रूके तत्पर,
चलना ही ज़िंदगी है देती संदेश अक्सर,
मन एक सागर है चंचल,
कभी लहरों के आवेग होते समतल,
कभी शीतल धारा को ले अंदर,
पर वे जानतीं हैं उनको बहना है अविरल ||
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल