शीर्षक -बिना आपके मांँ
शीर्षक -बिना आपके मांँ !
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हे मांँ! बिना आपके,हैं अधीर यह मन,
दुखी बहुत हैं हम!
महाविकल इस दग्ध हृदय को,
कौन बंधाए धीर, बज्रपात किया
अकस्मात, क्यों देव हुए बेपीर।
चारों और है तम?
भीतर बाहर का हर कोना,
आज दिखाई देता सूना।
धीरज टूट चुका है मन का,
दूभर लगता जीना,
रहती आंँखें नम!
दुःख अनेक झेले जीवन में,
पर !रही सदा मुस्कुराती
करके अमृतदान सभी को,
गरल स्वयं पी जाती,
हे देवी! रूप अनुपम!
गूंजती ही रहे, फैलती ही रहे,
कीर्ति आपकी महकती रहे।
बनके फूलों की सुंदर मनोहर लड़ी,
याद उनकी हृदय पर ये सजती रहे।
बाल रवि की तरह आगमन जब हुआ,
संकटों की घटाएं घेरे खड़ी
धूल से भरी कंटका कीर्ण थी,
राह जीवन की सूनी भयानक बड़ी
करके संघर्ष आगे ही बढ़ी सदा,
हर घटाएं यही गीत गाती रहें!
छल और पाखंड से सदा दूर थीं,
स्वच्छ और निर्मल था मन आपका।
अन्याय सह न सकें एक पल,
न्याय के प्रति समर्पित रहीं हैं सदा।
जागरण पथ की शक्ति थीं अग्रणी,
हर सुबह ये संदेशा ले आती रहे?
आगे -आगे बढ़ाए सदा ही चरण,
रूढ़िवादी घने वन के दल-दल भरे।
पथ में महका दी,नव प्रगति की किरण,
हर प्रगति संध्या जन-जन के मन में सदा,
प्रगति की ‘अलख,नित जलाती रहे?
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर