शीर्षक पितृ पक्ष
शीर्षक:पितृपक्ष
जीते जी कोई आया नही पूछने को
सुध न ली कभी दुःख और सुख को
बोल न बोले कभी दो मीठे प्यार से
बात न की कभी बैठ तसल्ली से
बाद मृत्यु के करते तेहरवीं अच्छे से
शोक कर रहे क्यो आज वही दिखाने को
पितृ मुक्ति की क्यो कर रहे आज कामना
मना रहे हैं श्राद्ध न जाने क्यो दिखाने को
हलवा, पूरी,बनाकर अपना ही पेट भरने को
और मिठाई बांटते फिरते पितरों के नाम पर
पंडित को देते खाना कपड़े और मिठाई उनके नाम पर
स्वर्ग सिधारे जो पूर्वज जिनकी न ली थी कभी सुध
पूर्वज जीमें फिर क्या अपना पेट भरा उनके नाम पर
पकवानों का स्वाद,ले ले कर खाया खूब
मैं कहती हूँ अब कितना भी लगाओ भोग
कितना भी अब खर्च करो खाने में मन मे रहेगा अवसाद
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद