शीर्षक- क्या मुहब्बत है *
क्या मुहब्बत है
कभी हमने तुमसे की
कभी तुमने हमसे की
ना जाने कब
प्यार के सागर में
ज्वार आया और
क्रोधरूपी हलाहल
निकला ………..
मैं शिव तो नहीं था
जो
पी जाता हलाहल
और
नीलकण्ठ कहलाता
जहर ऐसा घुला
प्यार के प्याले में
तबाह कर गया
दोनों ? जहां
अगर चाय की
चुस्की की तरह
थोड़ा हम पी लेते
और
थोड़ा तुम पी लेते
तो दोनों मर जाते
और ये प्यार
अमर हो जाता
या फिर मीरां की तरह
अमृत समझ पी जाते
और ये विष कलयुग
का अमृत हो जाता
शायद टूटते रिश्ते
दुहाई देते
हमारे प्यार की
शायद बच जाते
और
आधुनिक अर्धनारीश्वर
के गुण
गाते नही अघाते
और कहते
वाह क्या मुहब्बत है ।।
?मधुप बैरागी