शीर्षक: क्या तुम पुरुष सा बन पाओगी
शीर्षक:क्या तुम पुरुष सा बन पाओगी
तुम कभी पुरुष सा नही बन पाओगी…
चाहे कितने ही वेद पढो पर
मंदिर की पुजारी नही बन पाओगी
शमशान में देह की अंतिम क्रिया नही कराओगी
क्योंकि तुम कभी पांडव सा नही बन पाओगी….
कभी पांडव समान पति को जुवे में क्या हार पाओगी
घोड़ी चढ़ ससुराल कभी न जा पाओगी
बस मन को मारकर द्रोपदी सा चीर हरण पाओगी
क्योंकि तुम कभी बुद्ध सा नही बन पाओगी…
तुम चाहते हुए भी ज्ञान प्राप्त नही कर पाओगी
शांति के लिए क्या निडर भटक पाओगी पाओगी
क्योंकि तुम बच्चों को छोड के ही नही जा पाओगी
तुम कभी राम सा नही बन पाओगी…..
क्योंकि कभी राम से पति को परित्याग नही पाओगी
तुम पति की अग्नि परीक्षा कभी ले ही नही पाओगी
तुम उसकी गलतियों को माफ करती ही नज़र आओगी
मंजू तुम कभी कृष्ण सा नही बन पाओगी….
कभी परपुरुष से संबंध नही रख पाओगी
क्या राधा-कृष्ण सा नाम परपुरुष संग जोड़ पाओगी
खुलेआम रासलीला कभी नही रचा पाओगी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद