शीर्षक-आखिर कब तक
शीर्षक-आखिर कब तक
कब तक हैवानियत यूँ ही सहेंगी बेटिया
कब तक खुलेआम रहेंगे बलात्कारी
आखिर कब सुलगेगी हमारे अंदर चिंगारी
हर बार बार बार बच्चिया ही तो है हारी।
कितना तड़फ कर चीख निकली होगी
मेरी बच्ची को जब नोच रहा वो दुराचारी।
क्या झेल रही होगी मेरी नन्हीं सी जान वो
सोचकर रूह कांप ही जाती हैं कैसे सही होगी वो।
बार बार शर्मसार होती हैं ये दुनिया सारी
इंसानियत हार जाती हैं बार बार हर बार
असुरक्षित है आज देश की हर नारी ,बच्ची
आखिर कब तक यूँ ही सोती रहेगी जनता सारी।
चलो मिलकर इस अपराध के खिलाफआवाज उठाएं
इंसान के वेष में इन जानवरों को चलो आज मिटाएं
सजा दो आज इनको ऐसी की याद करे आने वाली पीढी
अब मोमबती नही एक जनाजा ही निकाला जाए।