शीर्षक:शायद
शीर्षक:शायद
आज जैसी ये शिक्षा मिली कि
लाचार माँ बेटे के साथ रहने को ही तरस रही
माँ दुःख के घूँट पी पी कर मन मे ही आशीष दे रही
कि शायद वो दिन आएगा जब बेटा मुझे बुलायेगा
सुनने को तो सब तरफ यही मिल रहा है कि
बेटा कमाने बाहर चला गया हैं लाचार माँ
निहारती हैं राह कि शायद बेटा आने वाला है
व्याकुल सी सोचती हैं कब बेटा मुझे बुलायेगा।
कभी तो बोलेगा माँ तुम इतनी उदास,परेशान
नाहक लाचार सी क्यो लगती हो मैं हूँ माँ तेरे लिए
घुट-घुट जीने को मजबूर माँ बीते दिनों को याद कर
कि शायद वो दिन आएगा जब बेटा मुझे बुलायेगा।
औलाद पर आज भार बन सी गई हैं माँ
क्या मौत से पहले तड़फती हैं बेटे के दरस को माँ
मौत को गले लगाने से पहले मिलना चाहती हैं माँ
शायद मौत से पहले तो मिलेगा अंतिम बार।
औलाद को पालती हैं फिर भी अकेली रही माँ
माँ , तुम धन्य हो बिन लालच के ही पोसती हो
माँ , तुम धन्य हो तभी तो ईश्वर रूप हो माँ
क्यों सोचती हो कि आएगा कोई ..आखिर क्यों.?
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद