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8 Jun 2022 · 1 min read

शीर्षक:लाड़ पापा का

लाड़ प्यार के वो जमाने कभी
मेरे भी अपने हुआ करते थे
कभी किसी रोज अपने पापा की
दुलारी मैं भी हुआ करती थी।
प्रकृति कठोर हो बहुत तुम
ममता और रिपुता दोनों शिद्दत से
किया करती हो तरसती होगी बेटी
लाड़ प्यार को कभी सोचा होता तुमने
तुम्हारा न होना मुझे
इतना कचोट सकता है समझो
रस्मों, रिवाजों, तमाशों में लगी हूँ
लोग संभल जाते हैं,पर मैं न सम्भली हूँ।
वो लाड़ प्यार के जमाने याद आते है
मस्त हुआ करते थे वो दिन पुराने भी
चुप मेरे होने पर भी तुम जान जाते थे
प्यारा सा वक्त आज भी याद आता हैं।
वो जमाने भी क्या हुआ करते थे
हर रोज हमारे ही हुआ करते थे
पापा के दुलारे हम भी हुआ करते थे।
लाड़ के वो जमाने हमारे भी हुआ करते थे।
🙏आप बहुत याद आते हो🙏

2 Likes · 1 Comment · 166 Views
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