शीर्षक:एकाकार
शीर्षक: एकाकार
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
पेड़ पर लगे पत्ते अनायास ही
हरे से पीले पड़ जाते हैं आखिर
कुछ तो है जो इस चक्र को संभाले है
अनगिनत हरे पीले पत्तो से भरा पेड़
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
मानो पीड़ा के अतिरेक का शिकार हुआ हो
अतिरेक के दम्भ से मानो सहम कर ही
रंग सा उड़ गया हो उसके जीवन चलन में
पीड़ा के अतिरेक के उबाल से ही दर्द पीड़ा हो
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
शायद तभी रंग से बेरंग सा हुआ
उसकी पीड़ा की धधकती ज्वाला से हो मानो
रंग ही बदल डाला हो उसके रूप सोंदय का
उसके यौवन पर मानो निंद्रा छाई हो
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
सीमित जीवन लिए ये सभी पत्ते
हरे से पीले हुए और गमन गति की और
फिर से अपने अतीत में विलीन होने को
जो कभी चटकते थे इन रंगों से
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
आज अनायस ही रंग हीन हुए
न जाने यही चक्र हैं प्रक्रिया का जो
स्वयं ही समयानुसार हो जाती हैं
रंग हीन लुप्त से होते सुप्त से होते वृक्ष से
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
उसके कौमार्य को परिपूर्ण कर चलने को
उसी और फिर से एकाकार होने को भूमि में
स्वयं मिटा भूमि को स्वयं के लिए खदिली करने
एकाकार की सत्यता पर…
अगम राह पर कदम लिए…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद