शीर्षक:मुझे मना लेना तुम
:मुझे मना लेना तुम
मुझे बहुत पसंद है न जाने क्यो
मेरा रूठना फिर तुम्हारा मुझे यूँ मनाना
बस यूँ ही मुझसे लड़ना गुस्सा होना तुम
मेरे आंसुओ को देख पिंघल जाना तुम।
और फिर मुझे मना लेना तुम…
मैने देखा हैं वो प्यार तुम्हारी आँखों में
मेरी हर गलती पर समझाया हैं तुमने
मेरी हर खामोशी को समझा हैं तुमने
और मैने हर पल साथ ही पाया है तुम्हे।
और फिर मुझे मना लेना तुम…
मेरी तो खुशियां तुमसे ही शुरू और
खत्म भी तुम पर ही होती हैं
मेरे तो सारे सवाल भी तुम पर ही और
जबाब भी सारे तुम्ही पर खत्म होते है
और फिर मुझे मना लेना तुम…
मेरी हर शरारत को नजर अंदाज कर तुम
मेरे साथ फिर से दिन को बिताते खुशी खुशी
कह देते कुछ ऐसा जो कभी कहने से भी न जो
करना था मुझसे सवाल पर जवाब खुद दे दिया
और फिर मुझे मना लेना तुम…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद