शीर्षक:मुक्ति
मुक्ति
कैसे मुक्त हो जाऊँ बोलो
जब जब दर्द मिलता हैं
दर्द की पीड़ा होती हैं मुझे भी.!
मुक्ति
मन शांत ही नही होता
रह रह टीस उठती हैं यादो की
यादें हावी होती हैं मुझ पर भी.!
मुक्ति
यादों के दर्द को सहेजने में
शायद समय की दरकार हैं
सम्भलूंगी वक्त लगेगा मुझे भी.!
मुक्ति
परिस्थिति अनुकूल होंगी
यही आस लिए चल रहीं हूँ
तभी तो वक्त लगेगा मुझे भी.!
मुक्ति
पथ बहुत सरल हैं मुक्ति का
बस बोझ तो है हमारी ख्वाहिशों का
होंगी सभी पूर्ण उम्मीद हैं मुझे भी.!
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद