शीर्षक:भीगी उजली सुबह हो तुम
शीर्षक:भीगी उजली सुबह हो तुम
भीगी भीगी सी उजली सुबह हो तुम मेरी
तुम से ही होती शुरआत सुबह की मेरी
तुम्हे देख उठती थी मैं खुलती थी आंखे मेरी
तुम्हारे साथ का सुकून तो यादो ने मेरी
भीगी उजली सुबह हो तुम…
मुझे ख्वाहिशें नहीं ज्यादा नही थी तुमसे
बस साथ चाहिए था उम्र भर का मुझे
क्यो तन्हाइयो में छोड़ गए तुम मुझे
तुमसे ही तो दुनिया उजली थी मेरी
भीगी उजली सुबह हो तुम…
तुम से ही तो सारी ऋतुएँ प्यारी थी मुझे
तुम पर तो आने से ज्यादा आस थी मुझे
तुमको देखे बिना करार नही था मुझे
तुमको देखते बातें करते अच्छा लगता था मुझे
भीगी उजली सुबह हो तुम…
समय रुक से गया हैं लगता हैं मुझे
अनंत स्नेहिल यादो में बसे हो मुझमे
लगता हैं साथ बैठ बाते करती रहूँ बस तुमसे
भीगी उजली सुबह हो तुम…
हर सुबह यादो का पिटारा ले उठती हूँ मैं
यादो ने तुम्हारी खोई रहती हूँ मै
आ जाओ एक बार जाने न दूंगी इस बार मैं
एकांत में बैठ यही सोचती हूँ घंटो मैं
भीगी उजली सुबह हो तुम…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद