शीर्षक:पिता
मैं गुमसुम सी देखती रहती कि….
आप अकेले ही सब परेशानी झलते रहे
आपने कभी साझा करना चाहा ही नही
अपने कष्टों को,परेशानी को
आप सदैव ही छुपाते रहे कि कहीं मुझे
कष्ट न हो आखिर कब तक पापा
आख़िर तक चलता रहा ये सब?
मैं गुमसुम सी देखती रही कि….
शायद मृत देह आपकी कुछ संदेश दे
पर अन्तिम क्षणों में भी कष्ट न देने का संकेत
आपके मिले औऱ मैं रोक नही पाईअश्रु -प्रवाह को
आपकी देह अंकुश न लगा सकी मेरे अश्रु आवेग को
सभी के समक्ष आपकी हिम्मत को सरहाती रही मैं
पर सोचती हूं क्या सम्भल आपने बिना मैं
और मैं गुमसुम सी देखती रह गई….
कितनी गहन पीड़ा के कष्ट को सहा मैंने पर आपने
स्नेह की पीड़ा चुभती रही शूल सी ह्रदय में
याद आते रहे वो क्षण जो नेह में भीगे थे आप संग
कैसे आप चले गए सोच ही नही पा रही हूँ मैं
कैसे रहेगी बिटिया आप के बिना
आखिर आप छोड़ कर चल ही दिए मुझे.!!
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद