शीर्षक:पापा बिन कैसा गाँव
शीर्षक:पापा बिन कैसा गाँव
आप गए तो बदली रंगत
हुआ परिवार विसंगत
वक्त के साथ बदली रंगत
न अब उनकी कोई संगत
पापा बिन कैसा गाँव…
न वो खुशियां ना रही जन्नत
ना खाते अब बैठ के पंगत
ना रही सखियों की संगत
खेलते थे हम लगा के पंगत
पापा बिन कैसा गाँव…
ना रहा चूल्हा ना वो रोटी
ना मिलती अब दादी की सोटी
जिससे वह डरा कर रखती
याद आती हैं दादी की शक्ति
पापा बिन कैसा गाँव…
मिट्टी के वो कच्चे घर थे
बैठ मुंडेर पर बाते होती
ना रहे गीत ना रहे मेले
जिसमे होते नए नए खेले
पापा बिन कैसा गाँव…
पापा से ही थी पहचान
अब नही पहले सा सम्मान
शहरीकरण मिला गाँव मे आन
कोई नही अब आप समान
पापा बिन कैसा गाँव…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद