शीर्षक:पापा क्या आपको पता हैं
शीर्षक:पापा क्या आपको पता हैं
क्या आपको पता है पापा..?
आपको कितने दिन हो गए मुझ से मिले
जब से आप गए हो पल पल
खोजती हूँ आपको स्वप्न में भी
पगली सी हुई इधर उधर
क्या आपको पता है पापा..?
आकाश की तरफ देखती हूं बावरी सी
कि आप शायद चमकता तारा बने हो
धूप में खोजती आपको कि शायद
सूरज की रोशनी बने हो
क्या आपको पता है पापा..?
नींद में भी रातो देखना चाहती हूँ स्वप्न
कि शायद आज आप आएंगे मिलने
यादो के आंगन ने निहारती आंखे
शायद सपना आज सच होगा
क्या आपको पता है पापा..?
अपनी कविताओ में तलाशती हूँ
शब्द शब्द लिखती हूँ आपको
कि शायद आपसे ही बाते कर रही हूँ
हँस लेती हूँ कुछ शब्द लिखकर ही
क्या आपको पता है पापा..?
क्या आपको पता है लिखती क्यो हूँ
शब्द शब्द जीती हूँ आप संग
आपको स्पर्श करती हूँ शब्दो मे
पाती हूँ आपका साथ लेखनी में
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद