शीर्षक:जी लूँगी
जीवन यात्रा में साथी तुम
बन जाते तो क्या ही बात होती।
मैंने जो सपने देखे थे
वो सपने सच हो जाते तो क्या ही बात होती।
पर ईश्वर को मंजूर न था
मेरे जीवन में तुम आ पाते।
इस सूखी जीवन की बगिया को
प्रिय आ करके तुम महका जाते।
तुम जहाँ भी हो खुश रहो प्रिये
तुम्हारे बिना भी जी लूंगी।
इस दुखी हुए दिल को अपने
मैं धीरे-धीरे बहला लूंगी।
जैसे भी होगा मैं जी लूंगी
हां सच में मैं जी लूंगी…..
जी लूंगी…