शीर्षक:कौन हूँ मैं
कौन हूँ मैं क्या है मेरा अस्तित्व,
यही प्रश्न उठता हैं प्रतिक्षण,
क्या नारी होना मेरी कमजोरी हैं
क्या वर्ष में एक दिन सिर्फ एक दिन
ही मेरे सम्मान के लिए चुना गया हैं
मैं जहाँ पैदा हुई वहां पराया धन कहलाई
भाइयों से कम सम्मान सदैव घर मे पाई
हर दिन बोला जाता मुझे सीखो सब क्योकि
जाना तुम्हे दूसरे घर मैं तो कभी समझ नही पाई
आखिर ईश्वर ने नारी क्यो ही बनाई
क्योंकि नारी हूँ मैं यही मेरी सजा हैं,
क्या मैं खुद इस रूप में धरती पर आई
ससुराल ब्याह कर गई तो वहाँ भी
दूसरे घर से आई बस यही सुनती आई
कहने को दो दो घर पर कहीं की न हुई
पराये पन की मार सदैव ही खाती चली आई
कहने को दो दो घर की है नारी,
रिश्तों के बीच सदा ही पिसती चली आई
कभी बेटी कभी पत्नी,कभी माँ मैं कहलाई
पर हर रिश्ते में अपने को ठगी सी ही पाई
परिवार के लिए अपनी सभी खुशियां
मैने तो जीवन भर दांव पर है लगाई
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद