शीर्षक:इच्छाएँ
इच्छाएँ ….
होती है अनंत इच्छाएँ
उद्वेलित मन की
जो आवेश पैदा कर
उद्दण्डता लाती है मन मे
पूर्ण होने पर शांत नही रहती
बार बार फिर से हलचल सी
पैदा करती है मन में
बेचैनी बढ़ाती है
असंख्य विकार साथ लाती है
इच्छाएँ….
कभी पूर्णता रूप में होती ही नही
एक इच्छा पूर्ण होती नही कि
दूसरी कमरकस तैयार होती
एक के बाद एक जन्म लेती
मानो कुकुरमुत्तों से जीवन चक्र
असांख्य रूप में सामना करती सी
निर्बाध चलती वे रोकटोक सी
गहन प्रभाव रखती सी मनःपटल पर
कभी न छोड़ती सी मानव को
इच्छाएँ…..
जन्म लेती जाती है प्रवाह से
किसी बांध से न रुकने वाली सी
स्वतः ही प्रफुल्लित होती जाती है
कश्मकश सी बनी रहती है पूर्ण जीवन
कि शायद ये इच्छा अंतिम हो
पर अंत तो होता है शरीर के साथ ही
शरीर के साथ ही होम होती है
पुनः शरीर मे स्वतः ही स्थान बना लेती है
कभी न छोड़ती सी मानव को
इच्छाएँ…..