शीर्षक:आज शर्मसार मेरी लेखनी
आज मेरी लेखनी शर्मसार हैं
लिख रही हैं उस औलाद की कहानी
जिसे जन्म दिया माँ ने कष्टो को सहकर
तुम्हे भी पढ़ने की व्याकुलता होगी कि क्या..!
आज क्या लिखने जा रही हूँ मैं लेखनी से
एक माँ के मन की उदासी,लाचारी,बेबसी
क्यो आज वर्द्ध आश्रम खुल रहे हैं क्यो ..?
उसी के बनाये आशियाने में बेगानी कर दी जाती हैं
जी हाँ जो आज घुट घुट कर क्षण क्षण कर रही हैं
मौत का इंतजार कर रही हैं जुल्म उस की ही संतान
आज माँ को बोझ समझ उसका बेटा करता है परेशान
माँ तो धन्य हैं जिसने जन्म दिया मौत से लड़कर आई
जिसको पालपोस कर किया बड़ा आज वो ही
आंखे दिखाने जो लगा आखिर किस राह चल दिया वो
जिन बच्चों को अकेली माँ ने बड़ा किया आज वो
सब मिल माँ को गेंद समझ एक दूसरे के पाले
फेंक खुद आजाद होने पर जश्न मनाते हैं पत्नी संग
क्यो भूल जाते है कि माँ तो साक्षात रूप हैं ईश्वर का
माँ जो एक शब्द सुनने को तरसती थी कि आज उसका
ननिहाल बोलना सीख रहा है अब वही उसको
जली कटी सुनाता रहा दिख रहा है
आखिर कहां गई उसकी शिक्षा जो माँ ने दी उसको
क्यो वो पल में ही भूल गया माँ का स्नेह
कितनी प्रताड़ना सहेगी आज माँ आखिर क्यों..?
क्यो विचलित हैं आज की युवा पीढ़ी..?
चुप रहने को क्यो किया मजबूर उसकी ही औलाद ने
जिसकी गोद मे मिलता था बचपन मे सुकून
कहाँ गई आज उसके बेटे की मानसिकता
शर्म आती हैं आज लिखते हुए भी पर हकीकत
सच मे हकीकत बया करती मेरी लेखनी
लेखनी आज शर्मसार हैं मजबूर है ऐसे शब्द लिखने को
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद