शीर्षक:आखिर क्यों हैं शरीर रूप
कभी कभी न जाने क्यों मन मे
भाव उठते हैं मानव जीवन चक्र भी क्या है
जन्म होना फिर पुनः लौट जाना
बैठे बैठे विचारो में स्वयं से ही प्रश्न होना
उत्तर न मिल पाने पर प्रश्नों का मन को कौंधना
मैं स्वयं में हूँ कि नही यह भी सोच नही पाती
कभी टूटा बिखरा हुआ पाती हूँ अपने वज़ूद में स्वयं को
गहरे दर्द को समेटे चली जा रही हूँ दिन रात यूँ ही
कोई समझा ही नहीं आंखों में ठहरे दर्द को कभी
टीस देते हैं अनायास ही मेरे स्वयं के प्रश्न मुझे ही
बहुत कुछ कहना है,लिखना हैं मुझे जीवन पर
पर कह नही पाती लिख नही पाती क्योंकि
समाधान नही मिल पाता स्वयं से स्वयं को
अब क्यूँ नही कुछ कह पाती यह भी प्रश्न हैं
कैसे कहु तुमसे मुझे लगता है जो मैं कहूँगी
क्या तुम सब समझ पाओगे मेरे मन के इस बहाव को
क्या तुम उत्तर दे पाओगे मेरे जीवित प्रश्नों के
मैं जिन प्रश्नों को दिल मे दबा कर बरसो से इंतजार मे बैठी हूँ,क्यो समाधान नही कर पा रही हूँ कि
आखिर क्या है जीवन क्या मनुष्य शरीर
क्यो हैं ..?कब तक हैं ..? सतत ये प्रश्न
ये सब जानने सुनने के बाद तुम्हारा भी कोई
जवाब ही नही आया तो …??
लाचार हूँ मैं अपने ही प्रश्नों के उत्तर के लिए
आखिर क्यों है शरीर..?नश्वर हैं काया मिट जानी है
तो फिर क्यो हैं मुझे नेह शरीर से …?
जन्म के बाद दिन दिन शीर्ण हो रहा है आखिर क्या है
क्यो है..?
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद