शीर्षक:अंजाना सा
**** अंजाना सा ****
एक अनजाना सा रिश्ता
मन का मीत बना और
फिर बिछुड़ गया
एक नश्तर बन मेरे जीवन में
साथ निभाने की जो बातें हुईं
छोड़ गया यूँ ही क्षण भर में
आज नश्तर से चुभते हैं
नासूर बन छोड़ गए चिह्न
जीवंत हूँ तो टीसता हैं वो दर्द
नजर अंदाज करती हूँ फिर भी
खामोश रह जाती हूं सोचकर
शायद यही किस्मत में लिखा है
बस गया था सांसों में मानो
रह नही पाऊँगी उस बिन
पर चल रही हैं जिंदगी यूं ही
अकेले सफर में चलते चलते ही
रह गया हैं मात्र यादो का कारवां
शायद कभी होगा मेरी यादों को
उसका सही मुकाम मुक्ति यदों से
न रहूँ कभी मैं प्रतीक्षारत
उस अंजाने से रिश्ते से मुक्त
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद