शीतलता के भीतर कितने ज्वाल लिए फिरते हैं।
शीतलता के भीतर कितने ज्वाल लिए फिरते हैं।
पीड़ाओं के आगे सुख की ढाल लिए फिरते हैं।
दुख की आपाधापी सागर के लहरों के जैसी,
कितना मथती क्या बतलाएं तरल ये कितना करती,
डग मग डग मग करते जर्जर जाल लिए फिरते हैं।
शीतलता के ……………….।
भ्रम पैदा करते हैं अपनी गदराई काया का,
पटुता से हम जाल बिछाते हैं अपनी माया का,
मनभावन रंगों से रंग कंकाल लिए फिरते हैं।
शीतलता के ……………….।
निंदा रस खदबद करता है टोना टोटका लेकर,
मन बैठा है जाने कितने शॉप का ठेका लेकर,
पर हम आशीर्वचनों की जयमाल लिए फिरते हैं।
शीतलता के ………………।
Kumar Kalhans