शिशुपाल वध
नटवर की एक और बुआ थी, नाम था जिसका शृतशोभा,
उसके गर्भ से जन्मा बालक अधम अधर्मी हठी महा।(१)
जन्मा था वो तीन नेत्र और चार भुजा के साथ ही ,
घबराई माता से विधि ने नभबानी से बात कही। (२)
जो भी आए उसकी गोद में देती रहना बालक को,
गायब हों जब भुज लोचन तो जानो इसके मारक को।(३)
एक दिन की मैं बात सुनाऊँ आए मिलने नटनागर,
बुआ बेचारी लेकर आई गोद में देने राजकुंवर। (४)
ज्यों ही कृष्ण ने गोद लिया हुए अंतर्ध्यान भुजा व नयन,
बुआ डर गई क्या शिशु का ये अंत करेगा नन्दनन्दन?(५)
जानी बुआ सभीत तो बोले मधुसूदन गिरिधारी हरि,
“शत अपराध क्षमा कर दूंगा” कहकर सारी चिंता हरि। (६)
बीते वर्ष शिशु अब चेदि राज बना शिशुपाल प्रबल,
खल कामी अभिमानी क्रोधी दम्भी अवगुण उसमें सकल। (७)
जब भी कृष्ण से मिलता था कहता अपशब्द उन्हें मुख से,
होते हैं कुछ ऐसे जीव जो रह ही नहीं सकते सुख से। (८)
जिनके अंतर्मन में सदा ही धधकती रहती है अग्नि,
ऐसे लोगों ने क्या कभी किसी की अच्छी राय सुनी ??(९)
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने एक यज्ञ विशाल किया,
इन्द्रप्रस्थ में किया आयोजित जिसमें सबको नेवत दिया। (१०)
शिशुपाल भी आया बैठा दम्भ से रहा सदा सा भरा,
गङ्गापुत्र के ब्रह्मचर्य पर उसने कटु कटाक्ष करा। (११)
निर्लज निर्गुण नीच नपुंसक क्या-क्या वो बकता ही रहा,
अपना सह भी लेते प्रभु पर भगत का ना अपमान सहा। (१२)
“सावधान होजा पापी तेरे बस दस अपराध बचे,
ऐसा ना हो सौ होने पर मेरी भृकुटि विशाल खिंचे।” (१३)
तब वो कृष्ण को बकता रहा जो जो मन आया ऊँट पटांग,
सत्तानवे अट्ठानवे निन्यानवे और कर गया सौ की गिनती लांघ।(१४)
प्रभु ने तुरत ही चक्र सुदर्शन अपने कर से छोड़ दिया,
मस्तक काट दिया हरि ने और मोक्ष मार्ग पर मोड़ दिया। (१५)
था तो वो पापी पर सनकादि मुनियों से शापित था,
नारायण का द्वारपाल जय हरिसेवा में अर्पित था। (१६)
है वो कथा विदित सबको उसकी चर्चा क्या व्यर्थ करें,
संत तो कोप करें तब भी सबका कल्याण समर्थ करें। (१७)
राम राम रटकर तो दस्यु भी ब्रह्मर्षि हो ही गया,
“जड़मति” जिसने राम भजे है कौन जो राम का नहीं हुआ।(१८)