शिशिर
चादर ओढ़े बर्फ की, शिशिर खड़ा है द्वार।
जल को छूने से लगे, ज्यों बिजली की तार। ।
ज्यों बिजली की तार, बर्फ गिरती रहती है।
ले हाथों में तीर,हवा शीतल बहती है। ।
सूर्ख धूप में बैठ,चलो खाते हैं गाजर।
मिलकर बैठे साथ,ओढ़ के ऊनी चादर। ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली