शिव स्तुति
हे ! आदिदेव, हे ! आदिपुरुष, शंकर भोले भंडारी ।
सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी तुम, नीलकंठ हे ! त्रिपुरारी ।।
गंगा बहे जटा से जिसकी, वह कैलास निवासी है ।
शशि मस्तक पर चमके जिसके, वह शम्भू अविनाशी है ।।
काल चक्र का संचालक वह, ओंम तत्व का है ज्ञाता |
रूद्र वही है महाकाल भी, पंचतत्व का निर्माता ।।
अनूप, अजन्मा, अनामय शिव, अक्षर, अरूप अविकारी ।
हे ! कष्टनिवारक दुखहर्ता, जड़ चेतन पालनकारी ।।
आरम्भ वही अन्त वही भी, शिव ही है घट घट वासी ।
ब्रह्मा, विष्णु समाहित शिव में, हे ! महादेव सुखरासी ।।
मृग छाल लपेटे फिरते हैं, तन पर भस्म लगाते हैं ।
देव, दनुज, नर नारी सब, शिव को शीश नवाते हैं ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
उन्नाव उ० प्र०