शिव स्तुति
गल माल सुशोभित नागन की,
तन पै शिव भस्म लगावत है ।
करि पान हलाहल शंकर ही,
नित सृष्टि अनूप रचावत है ।
कर जोरि भगीरथ पैर पड़ो,
जल गंग जटा ठहरावत है ।
धरि वेष दिगंबर पीर हरै,
शिव नाथन नाथ कहावत है ।।
विधि शोक भयो गति सृष्टि रुकी,
शिव दर्शन दै पुनि ज्ञान दियो ।
तप खंड कियो रतिनाथ जरा,
विनती सुनि कै वरदान दियो ।
सुनि क्रोध सती मख दक्ष जरी,
हति दक्षहिं जीवनदान दियो ।
अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा,
निज भक्तन को नित मान दियो ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी