*शिवाजी का आह्वान*
शिवाजी का आह्वान
उठो शिवाजी खड़ग संभालो आन-बान अभिमान की।
मन प्राणों में रची-बसी यह धरती हिंदुस्तान की।।
आतताईयों के खंजर से धरती लहूलुहान हुई।
जकड़ बेड़ियों में सारी मानवता आज गुलाम हुई।
अंधकार की जंजीरों से मुक्ति ज्ञान -विज्ञान की।।
उठो शिवाजी खड़ग संभालो आन-बान अभिमान की।
मन प्राणों में रची-बसी यह धरती हिंदुस्तान की।।
भ्रष्टाचार बना जीवन का हिस्सा, देश पुकार रहा।
अनाचार और दुराचार दुष्टों का है उत्पात मचा।।
घोर निराशा में मानव की भीति -रीति परिताप की।
उठो शिवाजी खड़ग संभालो आन-बान अभिमान की।
मन प्राणों में रची-बसी यह धरती हिंदुस्तान की।।
ऊंच-नीच के मतभेदों से शोषित-शोणित उबल रहा।
तटबंधों की गरिमा को धूमिल जल प्लावन मचल रहा।।
नवजीवन की सुबह लिये आशाओं के बलिदान की।
उठो शिवाजी खड़ग संभालो आन-बान अभिमान की।
मन प्राणों में रची-बसी यह धरती हिंदुस्तान की।।
जीर्ण-शीर्ण बंधन पट तोड़ जगत में नव रचना होगा।
नयी सोच को धारण कर जीवन पथ पर चलना होगा।।
हर घर -घर में अलख जगाओ जन मानस के गान की।।
उठो शिवाजी खड़ग संभालो आन-बान अभिमान की।
मन प्राणों में रची-बसी यह धरती हिंदुस्तान की।।
रचनाकार – कवि अनिल कुमार