शिवहर
शिवहरक धरती, पावन आ सुन्नर,
जतह लोकमे, सजल प्रेम सुन्नर।
खेत-खलिहान, हरियर माटि,
गाम लोग, बनल रसिक गाथा।
गोरियाक साड़ी, आँगन में,
गीत गा देलहुँ , सुख रंगरा मे
रातिक चान,दिनमे उगैत सुरज,
हर क्षण शिवहरक छवि नारि ,
फगुआमे होरी, सभ दिन दिवाली
हर पावनि गुंजायमान, शिवहर बोलू ।
मधुर बाजू, अहिक दिल से दिल भेटे,
शिवहर जेकर ओकर सभ दिल बसे ।
शिवहरक माटि, मधुर पुरान गीत,
संस्कृति के संजोए, सँजल अभिमान ।
जखन कखनो सुनैत त हृदय छूबैत अछि,
शिवहर हमर,सदैव अमर रहे।
श्रीहर्ष