कविता : शिवत्व
मंगल करना प्रभु अविनाशी।
मन हो जाए नगपति काशी।।
वैर भाव मन में न समाए।
प्रेम हृदय में भर-भर आए।।
लालच मन का दूर भगा दो।
हे प्रभु! शिवत्व राग जगा दो।।
दंभ मिटाकर शीतल मन हो।
काम भुलाकर पावन तन हो।।
मोह गँवाकर तुझको पाऊँ।
क्रोध नहीं मैं प्रभु अपनाऊँ।।
नित्य वंदना करता तेरी।
सुनो प्रार्थना मालिक मेरी।।
चंचल मन है भटका जीवन।
करदो इसको आकर मधुबन।।
ज्योति ज्ञान की तुम्हीं जलाओ।
भव-सागर से पार लगाओ।।
सुख-दुख में हो ध्यान तुम्हारा।
नहीं बनेगा मन बंजारा।।
पाकर तुमको सबकुछ पाऊँ।
निशि-वासर मैं तुमको ध्याऊँ।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना