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19 Jul 2024 · 2 min read

शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे’र

न तो अक्स हूं न वजूद हूं मैं तो जश्न हूं किसी रूह का
मुझे आईनों में न देख तू मुझे ख़ुशबुओं में तलाश कर

***

दुआ लबों पे तो आंखों में बंदगी रखना
नए अमीर हो तुम ख़ुद को आदमी रखना

***

तुम्हारी ख़ुशनुमा यादें मेरे दिल में बसी हैं यूं
कि जैसे सीप में मोती कि जैसे फूल में ख़ुशबू

***

नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए
कौन आएगा भला तुमको जगाने के लिए

***

हमदर्द कैसे-कैसे हमको सता रहे हैं
कांटो की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं

***

हंसते रहते हो ग़म ओ रंज छुपाने के लिए
तुम भी क्या ख़ूब पहेली हो ज़माने के लिए

***

बात करने का सलीक़ा मैंने पाया जिसमें
इक वही शख़्स मुझे शहर में ख़ामोश मिला

***

जिनके साए में गुनहगार खड़े होते हैं
वो कभी भी न बड़े थे न बड़े होते हैं

***

अपनी मंज़िल के लिए राह न तुम पाओगे
दिल में नफ़रत जो रखोगे तो भटक जाओगे

***

बताओ हिज्र के लम्हों में कैसे घुट के मर जाऊं
सितम की चाह बाक़ी है अभी महबूब के दिल में

***

दुश्मनों को दोस्ती का हर घड़ी पैग़ाम दो
इक तरीक़ा यह भी है उनको सताने के लिए

***

इसलिए धूप ज़रूरी है सभी के सर पर
लोग साये को कहीं क़द न समझ लें अपना

***

हथेली वक़्त से पहले मसल देती है हर आंसू
हमारी आंख के आंसू कभी मोती नहीं बनते

***

ज़रा सा वक़्त तो दे ज़िन्दगी मुझको संभलने का
बुरा हो वक़्त तो कुछ वक़्त लगता है संभलने में

***

मुझको डर है कि कभी तुम भी बदल जाओगे
मुझको देखोगे तो चुपचाप निकल जाओगे

***

ख़ुदा करे कि तुझे अब मेरी ख़बर न मिले
मेरी नज़र से कभी अब तेरी नज़र न मिले

***

अपनों से न ग़ैरों से कोई भी गिला रखना
आंखों को खुला रखना होठों को सिला रखना

***

सुनते थे हर किसी से हम अफ़साने दर्द के
अच्छा हुआ कि दर्द से पहिचान हो गई

***

सामने आ के मेरे जुर्म गिनाओ तो सही
मैं गुनहगार तुम्हारा हूं बताओ तो सही

***

अजीब ख़ुदकुशी में हूं जो जी रहा हूं मौत को
मैं क्या कहूं कि किस तरह ये ज़िन्दगी मुहाल है

***

एक बेनाम सा रिश्ता है अभी भी तुमसे
इस हक़ीक़त को छुपाएं तो छुपाएं कैसे

— शिवकुमार बिलगरामी —

Language: Hindi
Tag: शेर
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