शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे’र
न तो अक्स हूं न वजूद हूं मैं तो जश्न हूं किसी रूह का
मुझे आईनों में न देख तू मुझे ख़ुशबुओं में तलाश कर
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दुआ लबों पे तो आंखों में बंदगी रखना
नए अमीर हो तुम ख़ुद को आदमी रखना
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तुम्हारी ख़ुशनुमा यादें मेरे दिल में बसी हैं यूं
कि जैसे सीप में मोती कि जैसे फूल में ख़ुशबू
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नींद की गोली न खाओ नींद लाने के लिए
कौन आएगा भला तुमको जगाने के लिए
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हमदर्द कैसे-कैसे हमको सता रहे हैं
कांटो की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं
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हंसते रहते हो ग़म ओ रंज छुपाने के लिए
तुम भी क्या ख़ूब पहेली हो ज़माने के लिए
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बात करने का सलीक़ा मैंने पाया जिसमें
इक वही शख़्स मुझे शहर में ख़ामोश मिला
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जिनके साए में गुनहगार खड़े होते हैं
वो कभी भी न बड़े थे न बड़े होते हैं
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अपनी मंज़िल के लिए राह न तुम पाओगे
दिल में नफ़रत जो रखोगे तो भटक जाओगे
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बताओ हिज्र के लम्हों में कैसे घुट के मर जाऊं
सितम की चाह बाक़ी है अभी महबूब के दिल में
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दुश्मनों को दोस्ती का हर घड़ी पैग़ाम दो
इक तरीक़ा यह भी है उनको सताने के लिए
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इसलिए धूप ज़रूरी है सभी के सर पर
लोग साये को कहीं क़द न समझ लें अपना
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हथेली वक़्त से पहले मसल देती है हर आंसू
हमारी आंख के आंसू कभी मोती नहीं बनते
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ज़रा सा वक़्त तो दे ज़िन्दगी मुझको संभलने का
बुरा हो वक़्त तो कुछ वक़्त लगता है संभलने में
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मुझको डर है कि कभी तुम भी बदल जाओगे
मुझको देखोगे तो चुपचाप निकल जाओगे
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ख़ुदा करे कि तुझे अब मेरी ख़बर न मिले
मेरी नज़र से कभी अब तेरी नज़र न मिले
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अपनों से न ग़ैरों से कोई भी गिला रखना
आंखों को खुला रखना होठों को सिला रखना
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सुनते थे हर किसी से हम अफ़साने दर्द के
अच्छा हुआ कि दर्द से पहिचान हो गई
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सामने आ के मेरे जुर्म गिनाओ तो सही
मैं गुनहगार तुम्हारा हूं बताओ तो सही
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अजीब ख़ुदकुशी में हूं जो जी रहा हूं मौत को
मैं क्या कहूं कि किस तरह ये ज़िन्दगी मुहाल है
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एक बेनाम सा रिश्ता है अभी भी तुमसे
इस हक़ीक़त को छुपाएं तो छुपाएं कैसे
— शिवकुमार बिलगरामी —