शिक्षिका
बचपन में जब देखा करती थी
पास की बहन जी को,
किसी का ब्लाउज और किसी की साड़ी
चप्पल भी एडी से घिसी थी बेचारी
चेहरे पर थी तीन कोस चलने की लाचारी
कंधे पर काला बैग लगती थी दुखियारी
तब सोचा करते थे कुछ ना कुछ तो जीवन में कर ही लेंगे
और अगर कुछ ना बन सके तो टीचर कभी ना बनेंगे
बीहड़ में पैदल चल पाना मेरे बस में नहीं
कोई बहन जी बुलाए यह तो मेरा स्टेटस नहीं
टीचिंग के लिए फीलिंग वॉर्म नहीं
इस पर दिल आ जाए जॉब में ऐसा चार्म नहीं
पर आज हर रोज ही यह सोचती हूं अगर मैं टीचर ना होती तो ,,
हर रोज राष्ट्रगान को गाने का मुझे सौभाग्य न मिलता ।
आभावो में भी मुस्काता बचपन ना दिखता ।
मन की बात जिससे कह लेते है ऐसा दोस्त मुझे कौन समझता।।
आज मैम जी मैम जी करते बच्चे आगे पीछे घूमते हैं,
स्कूल से विदाई पर सिसक सिसक कर रोते हैं ।
हम टीचर बच्चों की आंखों में तारों से चमकते हैं ,
बच्चों के लिए टीचर सच में दूजे ईश्वर होते है।