शिक्षा अनुपम ज्ञान सरोवर
शीर्षक-” शिक्षा अनुपम ज्ञान सरोवर ”
विद्यालय पहुँची जननी निज
पूत लुटाती प्यार,
उच्च,सुशिक्षित,अनुशासन का
श्रेष्ठ समझकर द्वार।
कुंभकार गुरु माटी लेकर
गढ़ता शिशु आकार,
सौम्य,सभ्य, गुणवान प्रणेता
भरता शुद्ध विचार।
संस्कार पोषित कर शिक्षा
बना रही विद्वान,
ज्योति जलाकर उजियारे की
बाँट रही संज्ञान।
चेतनता अंतस पूरित कर
मिटा द्वेष, अज्ञान,
स्वावलंब, विश्वास जगा कर
जन पाते सम्मान।
धूम शक्ति का पुंज समाहित
वेद शास्त्र का मूल,
जिज्ञासा मन शोध कराती
सकल भ्रांति को भूल।
वैज्ञानिक, शिक्षक, अफ़सर मिल
शूल बनाते फूल,
शिक्षा अनुपम ज्ञान सरोवर
बिना ज्ञान सब धूल।
स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” शिक्षा अनुपम ज्ञान सरोवर” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।