शिक्षक
शिक्षक
जो स्वयम् को जला कर,
स्वयम् को गला कर
जहाँ को रौशन करे
शिक्षक को मै ऐसी मोमबत्ती
हर्गिज़ नहीं कहूँगी. ….
पर सच कहती हूँ
ताउम्र मैं मेरे शिक्षकों की
रिणी रहूँगी।
मै शिक्षकों को सर्जक कहना चाहती हूँ
वे सृजन करते रहे
उत्कृष्ट भविष्य का
दे कर उत्कृष्ट ग्यान
उत्कृष्टतम बनाते रहे
चरित्र अपने शिष्य का ।
और कभी तो मुझे
शिक्षक में सैनिक दिखाई देता है
जो प्रतिस्थापित हो
छात्र के अंतस में
राष्ट्र की सुरक्षा हेतु
जान हथेली पर रखे
चुनौती के समक्ष तैनात दिखाई देता है ।
वो भी शिक्षक ही तो है
जो धर्म बनकर
शिष्य को नैतिकता के
प्रशस्त पथ पर
चलने को उकसाता है।
शिक्षक संबल है कमजोर को ,
शिक्षक सोटी है कामचोर को,
शिक्षक अंगारा है
वो भस्म कर अग्यान की खरपतवार
खोलता रौ़शन द्वारा है ।
शिक्षक कुम्हार है
कच्ची मिट्टी के लोंदे का तारणहार है
सहारता भीतर से
बाहर देता चोट है
और ठोक-ठोक कर
निकालता हर खोट है ।
माँ की सी ममता
बसती है उसके हृदय में ,
पिता का सा
संस्कार भी है कृत्य में ,
वो भाई है
वो बहन है
सच्चा शिक्षक
संसार का सबसे सुरक्षित सहन है।
अंधे कुँऐ से खींच कर
बाहर निकाल दे ऐसी रस्सी है
विधाता से लड़
शिष्य का उज्ज्वल भविष्य लिख दे
ऐसी मसि है ।
आभार शिक्षक का
जिसने ग्यान दिया
पाताल के तम से निकल
अंतरिक्ष तक की
उड़ान को विमान दिया ।
आभार उस आधार का
जो बना मार्ग उद्धार का ।
मैं शिक्षक के रिणों से कभी भी
उर्रिण नहीं हो सकूँगी
हे शिक्षक मैं तुम्हें
स्वयम् जल कर
जहाँ को रौशन करने वाला
दीपक हर्गिज नहीं कहूँगी
मगर ताउ्म्र मैं गर्व के साथ
मेरे शिक्षकों की रिणी रहूँगी
मैं मेरे शिक्षकों की रिणी रहूँगी
अपर्णा थपलियाल”रानू”