*शाश्वत सत्य*
सत्य कटु है जानत सब कोई,
बिन प्रेम जीवन में कछु ना होई।
धन दौलत सब व्यर्थ हो जाई,
बंगले महल सब यहीं रह जाई,
पाप गठरिया जो तू ढोए,
यम की मार पड़े फिर रोए,
रिश्ते नाते यहीं छूट जाई,
बिन प्रेम जीवन में कछु ना होई।
इन सांसों का मोल तू जाने,
हरि गुण सत्संग को अपना ले,
छूट जाए जब प्राण पखेरू,
खाक राख सब माटी होई जाई,
बिन प्रेम जीवन में कछु ना होई।
मात- पिता, तिरिया, सुत दारा,
बाटन लागे पाप तुम्हारा,
कछु दिन ही में भूल सब जईहै,
जाग सखी सोए का होई।
बिनु प्रेम जीवन में कछु ना होई।।
शशांक मिश्रा