बुद्ध
पाँच सौ तिरसठ ईसा , पुर्व माह वैशाख |
पूर्णिमा वन लुम्बिनी , घिरे साल के शाख ||
घिरे हुए अति साल वन , बहती गंध समीर |
महा माया मुग्ध हुई , ममता मय मन धीर ||
महा माया के तन से , सुद्दोधन के पूत |
जनम लिये वन लुम्बिनी , बन कर अमर सपूत ||
वट पीपल के छांव में , बन कर ज्ञान प्रवीन |
ऋषि पत्तन उपदेश दे , हुये जगत समचीन ||
पावन हुई निरंजना , उरवेला वन ठांव |
बने बुद्ध सिद्धार्थ ही , वट पीपल के छांव ||
सुखद समय था स्नेह का, मातु सुजाता गांव |
खीर खिलाकर बुद्ध को , धन्य हुई वट छांव ||
जन्म ज्ञान अरु मृत्यु दिन , बना बहुत ही खास |
दिन रहा सब पूर्णिमा , रचे बुद्ध इतिहास ||
ऋषि पत्तन को सारनाथ , जाने सकल जहान |
प्रियदर्शी उपदेश दे , हो गये बुद्ध महान ||