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10 Nov 2020 · 1 min read

शायद…..

“शायद”

इक और मुलाकात हो जाए उन्हीं से शायद….
उनकी आंखों में मैंने इंतजार देखा था शायद,

बात कल परसों की नहीं हाल ही की है यारों,
बदला बदला मिज़ाज आजमा रहा था शायद….

रुक जाता मैं उसे देख के उसी लम्हें में शायद,
आंखों के इशारों से मुझे रोक रहा था शायद…

हम तो यूं हीं निकले थे काले सफेद कपड़ों में,
उसने भी ब्लैक एंड व्हाइट पहन रखा था शायद…

वैसे तो हरेक रोज़ मुश्किल है उन्हें देख पाना,
आज उन्हें सुबह और शाम भी देखा था शायद…

गुलाबी होंठों की मुस्कुराहट मत देखना साहब,
हरेक ज़ख्म का दोषी मुझे समझ रहा था शायद…

हाथ बहुत कोमल थे, यकीनन मखमल हों जैसे,
गैरों को अपनी तकदीर मुझे बता रहा था शायद…

नासमझ अपनी आंखों में दर्द छुपा रहा था शायद,
और मुझे मुस्कुराते हुए गले लगा रहा था शायद…

कोई तो बात जरूर होगी आज जज़्बाती शायर,
वरना खुद की चादर मुझे नहीं उड़ा रहा था शायद…
#जज्बाती
#Rahul_rhs

1 Like · 377 Views
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