शायद कुछ अपने ही बेगाने हो गये हैं
मैं
इश्क की दुनिया से दूर ……………….
बहुत-दूर निकल आया हूँ
अपनों ने भुला दिया है
ऐ-बेगानों
अब तुम्हारे पास आया हूँ
गैरों की महफ़िल में बैठा हूँ
फिर भी सब अपने से लगते हैं
कल रात अपनों में गया था पाया
सब चेहरे धुंधले लगते हैं
और निकट गया
फिर भी चेहरे ना साफ़ हुए
पूछा
क्यों भाई
तुम्हारा चेहरा धुंधला क्यों है
क्या मुंह काला कर लिया है
बोला अपना
क्या ……..!
पी …कर आये हो
हाँ ….पी कर ही आया हूँ भाई
अब बिन पिए रहा भी तो नहीं जाता है
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अपने आप से ही पूछा
क्यूँ पीते हो ‘घायल ‘
कुछ समझ नहीं आया
बोले अपने
पी कर क्या ख़ाक समझ आएगा
मैंने कहा
तुम भी पी लो थोड़ी सी
मन बहल जाएगा
बोले अपने बहल नहीं ………
बहक जाएगा
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नहीं …………….!
बहका तो पहले था
अब ही तो होश में आया हूँ
अपने हँसते हैं
अपना ही मुंह काला कर के
और फिर
जब चेहरे ना पहचाने जाएँ
तो कहते हैं
क्यों भाई पी कर आये हो
खैर छोड़ो कल की बात
रात गयी ……….बात गयी
कोई और किस्सा छेड़ें
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कहते हैं
लड़की की
शादी के बाद
दुनिया बदल जाती है
अपने बेगाने और ……..बेगाने
अपने बन जाते हैं
काश मैं भी लड़की होता
और मेरी भी दुनिया बदल जाती
कल एक लड़की कह रही थी
मर्द ‘कमीने ‘ होते हैं
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मगर मैं तो नहीं कह सकता
मर्द जो हूँ भाई
मर्द हो कर ,
मर्द जात पर
कीचड कैसे उछालूँ
हाँ अपने पर उछाल सकता हूँ
किसी ने कुछ माँगा था
दे नहीं पाया
सोचा ………वापिस आये ……..ना आये
क्या भरोसा
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किसी पर विश्वास भी तो नहीं रहा
यहाँ तक …….कि ……अपने पर भी नहीं
वो ……………क्या था –इक गाना
“आस नहीं , विश्वास नहीं ”
मेरा मन मंजिल के निशाँ ढूंढें …….
विश्वास हो कैसे
जब आस ही नहीं
और फिर मंजिल होगी
तभी तो निशाँ ढूंढेंगे
मंजिल तो बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
अपनों में ही अपना
ढूंढते-ढूंढते
इतना आगे निकल आया हूँ कि
चलते-चलते कदम थक से गए हैं
मगर शायद
शायद क्या, सच ही तो है
कोइ अपना उठा
और बेगानों की महफ़िल में जा बैठा
अब उस-के मुकाबले में
कव्वाली भी तो नहीं गा सकता
क्या हुआ जो सामने वालों में आ गया
कभी तो अपना था
फिर बहक गया हूँ शायद
मगर आज तो नहीं पी
फिर यह चेहरे
नए-नए से क्यूं लगते हैं
हाँ याद आया
में अपनों से दूर
बे-गानों में जो चला आया था
मगर
कुछ चेहरे
जाने पहचाने भी तो हैं
शायद कुछ अपने ही
बेगानों में चले आये हैं
शायद कुछ अपने ही
बेगाने हो गए हैं।