शाम होते ही
हर सुबह वो प्यार के मोह में घुल जाता है।
शाम होते ही वो फिर से बदल जाता है।।
दिन में लगता है वो खिलता सा गुलाब,
पूरे कर देगा जैसे वो मेरे सारे ये ख्वाब।
समेटकर सारे फूल वो काटे बिछाता है,
शाम होते ही वो फिर से बदल जाता है।।
कभी तो मंडरा जाते है खुशी के बादल,
जल्द ही छाजाता है उदासी का आँचल।
जाने उसे कौन सा ऐसा गम सताता है,
शाम होते ही वो फिर से बदल जाता है।।
कभी वो फिजाओ की तरह महकता है,
कभी वो चिड़ियों की तरह चहकता है।
हस हसकर वो सारा दिन बतियाता है,
शाम होते ही वो फिर से बदल जाता है।।
“सुषमा मलिक”