शाम को तो सूरज डूबना चाह रहा है
शाम को तो सूरज डूबना चाह रहा है
चाँद आसमां को चूमना चाह रहा है।।
देश सेवा का आया अवसर होड़ लगी
कहाँ कोई मौका चूकना चाह रहा है।।
मौज मस्ती का आये वक्त,उम्र न देखे
सावन में हर कोई झूलना चाह रहा है।।
स्वच्छ भारत की है परिकल्पना जब
फिर क्या कोई थूकना चाह रहा है।।
देश भक्तो का देखो जूनून, ऐसे में तो
भला कौन देश को लूटना चाह रहा है।।
“दिनेश” कवि