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17 Feb 2024 · 1 min read

शाम के ढलते

शाम के ढलते ही एक दौड़ सी खत्म हुई,
शहर के शोर शराबे की सदा सी खत्म हुई।

ढूंढ रहे थे हम भी सपनों को इन आंखों में,
पर उससे पहले ही नींद आंखों में जब्त हुई।

आहिस्ता आहिस्ता ज़रा चलो सांसें तुम भी,
लगता है शहर जैसी कहीं तुम भी तो नहीं हुई।

आहटें आती है जब भी वो हवाएं चलती है,
धुंधली यादें लगता है ताजा कहीं फिर हुई।

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