शाम उषा की लाली
शाम उषा की लाली
संध्या समेट रही बिखरी लाली
प्रकृति प्रकिया जगत निराली
रात दिवा बजती गूंजन बाती
घनघोर घटा छाती दिन राती
निशा उषा का आंगन भारी
खेत क्यारी भरी हरियाली
निर्वात निस्तब्द निःशब्द में
हिलोरे पवन की किलकारी
टी .पी. तरुण