*शान्ति मिलती रहे*
जहां भी हो वो आत्मा,वस शान्ति मिलती रहे।
जन्नत में उनकी हमेशा,वो कान्ति खिलती रहे।।
मैं अकिंचन हूँ ,खुश रहें वो अपनी ठौर पे वहां
खबर मेरी भी उन्हें ये, हर बार ही मिलती रहे।।
शीश नवाता हूँ मैं अपना ,उनके चरणों में ये
स्वर्ण–रश्मियां –दामन, वस उनका भरतीं रहे।।
उनकी बदौलत ही ताज रखा है सिर पे हमारे
मुबारक ये खुशियाँ उनकी, हमेंशा फलती रहें ।।
ये दिन ये रातें , खिलखिला कर हंसतीं हैं यों
की खुश रहें वहां वो ,ये बहारें झूमें नचती रहें ।।
जहां भी उगा हो जिस खेत में,फलता रहे वह
जिंदगी “साहब” उनकी , वहां विहंसती रहे ।।